Search
Close this search box.

अडानी के बचाव में बीजेपी ने सारे घोड़े खोल दिए हैं (आलेख : रविंद्र पटवाल)

 

 

यह एक ऐसा मुद्दा बनता जा रहा है, जिस पर देश में एक ऐसी जंग छिड़ गई है, जिसका कोई ओर-छोर नजर नहीं आ रहा। भारतीय मीडिया और संसद के भीतर सरकार के रुख को देखकर तो सहसा यही यकीन होता है कि हिंडनबर्ग के खुलासे की तरह इस बार भी मोदी सरकार अडानी समूह को संकट से बाहर निकालने में कामयाब होने जा रही है।
लेकिन तस्वीर का यह सिर्फ एक पहलू है, जिसे देशी सरजमीं पर जमकर स्पिन दिया जा रहा है, लेकिन हकीकत तो यह है कि दुनिया भर में अडानी के कथित भ्रष्टाचार के मुद्दे पर खूब चर्चा हो रही है, जिसका सीधा संबंध भविष्य में विदेशी निवेश से जुड़ा हुआ है।
इस बार जब अमेरिकी अदालत की ओर से अडानी समूह के मालिक गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी सहित 8 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप निर्धारित करने की बात आई, जिसमें अमेरकी गुप्तचर एजेंसी एफबीआई पहले ही सागर अडानी को हिरासत में लेकर पूछताछ कर चुकी थी और उनके लैपटॉप और फोन से महत्वपूर्ण दस्तावेज जब्त कर चुकी है, तो उस मामले पर भारत में चर्चा से मोदी सरकार आखिर कहाँ तक बच सकती है।
इस खुलासे के चार दिन बाद बीजेपी के एक प्रवक्ता की ओर से बयान जारी कर बताया गया था कि बीजेपी और सरकार अडानी के बचाव में नहीं आने वाली है और उन्हें अपने बचाव में खुद जो करना है, उसके लिए वे स्वतंत्र हैं।
उसी शाम से अडानी समूह की ओर से आधिकारिक बयान, और अगले दिन सुबह देश के दो बड़े वकीलों के बयानों को बड़े पैमाने पर जारी कर सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट में हजारों करोड़ रुपये की कथित घूस मामले को ख़ारिज किया गया और पूर्व सोलिसिटर जनरल मुकुल रोहतगी के बयानों को सुर्ख़ियों में लाकर अडानी के शेयरों में जो 30% तक की गिरावट आ चुकी थी, उसमें वापस तेजी का दौर शुरू करने में यह मेहनत रंग लाने लगी।

यह भी पढ़े :  Barabanki: सुसाइड नोट में पत्नी व ससुराल वालों के लिए यह बात लिखकर फांसी के फंदे पर झूल गया युवक, हुई मौत, परिवार में मचा कोहराम

लेकिन इसके साथ ही संसद का शीतकालीन सत्र भी शुरू होना था। संसद में यदि अडानी पर अमेरिकी अदालत के समन पर सरकार चर्चा के लिए राजी हो जाती, तो संभवतः अडानी समूह एक बार फिर से चर्चा में आ जाता। बहुत संभव है कि जिन तथ्यों के खुलासे की वजह से अडानी समूह के शेयर 4 दिन में 30% तक घट गये थे, संसद में चर्चा और सनसनी से ये बातें आम लोगों तक पहुंच सकती थी। यही नहीं, अडानी समूह और पीएम नरेंद्र मोदी की दोस्ती और विदेशी ठेकों में अडानी को कॉन्ट्रैक्ट मुहैय्या कराने में प्रधानमंत्री की भूमिका को लेकर विपक्ष एक ऐसा नैरेटिव बनाने में कामयाब रहता, जो बीजेपी के भविष्य पर कालिख पोत सकता था।
इसी को मद्देनजर रखते हुए संसद के शीतकालीन सत्र का पहला हफ्ता अडानी के मुद्दे को उठाने के साथ ही रोज स्थगित होता गया। भारतीय संसदीय इतिहास में यह शायद पहला अवसर होगा, जब विपक्ष हंगामा करे, उससे पहले ही दोनों सदन के सभापति अडानी नाम का उच्चारण सुनते ही सदन की कार्रवाई को स्थगित कर देने के लिए तत्पर दिखे। ऐसा जान पड़ता है कि जैसे उन्हें स्पष्ट आदेश हो कि इस नाम को किसी भी हाल में संसद के भीतर उच्चारित करने की अनुमति नहीं देनी है।
और यहीं से पता चलता है कि बीजेपी की कथनी और करनी में कितना अंतर है। भाजपा प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल का यह बयान, “अडानी को अपने बचाव में खुद पहल करनी होगी, भाजपा उनके बचाव में आगे नहीं आएगी”, दो दिन भी नहीं टिक पाया। संसद को पूरे सप्ताह भर सिर्फ अडानी के मुद्दे पर न चलने देने की पहल कर भाजपा और एनडीए सरकार किसे बेवकूफ बना रही है?

यह भी पढ़े :  Barabanki: बस चेकिंग के दौरान हार्टअटैक पड़ने से संविदा परिचालक की मौत, परिजनों ने टीआई पर धमकाने का लगाया आरोप

लेकिन बीजेपी यहीं तक सीमित रहती, तो गनीमत थी। जब उसने देखा कि विपक्ष संसद में गतिरोध को देखते हुए संसद के बाहर ‘अडानी-मोदी एक हैं’ के पोस्टर अपनी पीठ पर चिपकाकर इस मुद्दे को हवा दे रही है, तो उसकी ओर से जवाबी रणनीति में जो नैरेटिव गढ़ा गया है, वह बेहद हैरान करने वाला है, जिसके निहितार्थ और परिणाम दोनों काफी घातक हो सकते हैं।
एक तरफ तो भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा के द्वारा नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को उच्च कोटि का गद्दार करार दिया जा रहा है, जो बताता है कि अडानी मुद्दे पर नेता प्रतिपक्ष के अड़ियल रुख से भाजपा किस कदर बौखलाई हुई है।
दूसरा उससे भी हैरतअंगेज है भाजपा की ओर से अडानी के बचाव में एक काउंटर-नैरेटिव को गढ़ने में, जिसमें उसकी ओर से दावा किया गया है कि यह सब अमेरिकी स्टेट और डीप स्टेट + ओसीसीआरपी (संगठित अपराध एवं भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट) + राहुल गांधी का किया-धरा है। साधारण शब्दों में कहें तो, भारत की तरक्की से नाखुश अमेरिकी डीप स्टेट (बीजेपी के हिसाब से जॉर्ज सोरोस और ) के द्वारा संगठित अपराध एवं भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट को फंडिंग की जाती है, जो अडानी को बदनाम करने के लिए खबरें गढ़ता है, जिसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी के द्वारा हाथों-हाथ लिया जाता है, और अडानी पर हमला कर असल में विपक्ष पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुहिम चलाकर देश को कमजोर करने की साजिश का हिस्सा बन रहा है।
इस संबंध में बीजेपी की ओर से एक ट्वीट की श्रृंखला तैयार की गई है, जिसमें संगठित अपराध एवं भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट की खबरों की कटिंग लगाकर समझाने का प्रयास किया गया है कि कैसे इसकी खबरों को कांग्रेस नेतृत्व के द्वारा हाथोंहाथ लेकर असल में अमेरिकी डीप स्टेट के हाथों खेलने का काम किया जा रहा है।
बीजेपी की ओर से जारी ओपनिंग रिमार्क में ही लिखा है कि “पिछले चार वर्षों के दौरान कांग्रेस पार्टी ने जिन भी मुद्दों पर भाजपा को घेरने की कोशिश की है, वे सभी विदेशों से उत्पन्न होने वाले नैरेटिव और सहायक सामग्री के आधार पर तैयार किये गये हैं। उदाहरण के लिए पेगासस, अडानी, जाति जनगणना, ‘डेमोक्रेसी इन डेंजर’, ग्लोबल हंगर इंडेक्स, धार्मिक स्वतंत्रता और प्रेस स्वतंत्रता जैसे मुद्दे — सभी अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से बड़े पैमाने पर आकर्षित होते हैं।”
भाजपा की ओर से इस डीप स्टेट को अमेरिका से जुड़ा बताया गया है, जिसका स्पष्ट लक्ष्य प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाकर भारत को अस्थिर करना बताया गया है। उसके अनुसार, इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए डीप स्टेट के द्वारा संगठित अपराध एवं भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट की ओर रुख किया गया और पीएम मोदी और भारत की छवि को खराब करने के लिए इस संगठन को सामग्री तैयार करने के निर्देश दिए गये। कांग्रेस ने तब इस सामग्री का इस्तेमाल पीएम मोदी पर हमला करने, झूठे नैरेटिव का प्रचार करने और संसद की कार्यवाही को बाधित करने में इस्तेमाल किया।
इसके बाद पंचलाइन में बीजेपी का कहना है कि अमेरिकी डीप स्टेट इस दौरान हमेशा पर्दे के पीछे से काम कर रहा था।
ट्वीट की इस लंबी श्रृंखला के अंत में भाजपा ने निष्कर्ष के तौर पर लिखा है, “डीप स्टेट एक बुरी बला है जिसने विनाश के अलावा कुछ नहीं लाया है।” इस ट्वीट में बाकायदा डायग्राम बनाकर समझाया गया है कि कैसे ये पूरा चक्र काम करता है। हैरानी की बात यह है कि डीप स्टेट और अमेरिकी सरकार को एक साथ दिखाया गया है, जो बताता है कि भाजपा का मीडिया प्रभाग काउंटर नैरेटिव की रौ में काफी आगे बढ़ चुका है।
मजे की बात यह है कि इस पूरे ट्वीट में एक भी बार अमेरिकी ग्रैंड जूरी के द्वारा अडानी समूह के द्वारा पांच भारतीय राज्यों के अधिकारियों और सरकारों को घूस देने की पेशकश के खिलाफ समन का जिक्र तक नहीं किया गया है। बता दें कि अमेरिकी अदालत में अडानी समूह के मालिकान को इस समन के जवाब में या तो अपनी ओर से सफाई पेश करनी होगी या फिर अपराध कुबूल कर भारी पेनाल्टी चुकता करनी होगी। इन दोनों ही सूरत में भले ही अडानी का नाम भाजपा देश में बदनाम होने से बचा ले जाए, लेकिन भविष्य में पश्चिमी देशों से निवेश की संभावना काफी कमजोर हो जाने वाली है।
जहां तक संगठित अपराध एवं भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट का प्रश्न है, की फंडिंग में यूनाइटेड नेशन डेमोक्रेसी फंडिंग का शुरूआती योगदान रहा है, जिसे भारत सरकार की ओर से फंडिंग की जाती रही है। भारतीय मीडिया पोर्टल ‘द प्रिंट’ के मुताबिक, वर्ष 2022 में भारत के द्वारा यूएन डेमोक्रेसी फंडिंग को 1.50 लाख डॉलर की सहायता की गई थी। अब तक भारत 32 मिलियन डॉलर की फंडिंग इस संस्था को कर चुका है, और तीसरा सबसे बड़ा दानदाता है। (https://theprint.in/world/india-contributes-usd-150000-to-un-democracy-fund/904687/)
इस प्रकार कह सकते हैं कि जिस संस्था को भारत की मोदी सरकार वित्तपोषण करती है, वो विभिन्न देशों के पत्रकारों के समूह, संगठित अपराध एवं भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट, का वित्तपोषण कर असल में अमेरिकी डीप स्टेट की मदद और भारत के खिलाफ काम कर रही है? है न विरोधाभासों से भरा बीजेपी का नैरेटिव!
उल्टा, दुनिया भर के देश तो यह देख कर हैरान हो रहे होंगे कि जिस मुद्दे पर अमेरिकी अदालत और नामचीन अख़बार चर्चा कर रहे हैं, उस बारे में भारतीय सरकार आखिर क्यों अपने देश में जांच नहीं करा रही है? जांच तो बड़ी बात है, संसद में विपक्ष के द्वारा अडानी मुद्दे पर चर्चा की मांग उठाने पर संसद को ही स्थगित कर दिया जा रहा है। ऐसे देश में यदि निवेश भी कर दिया जाये, तो क्या गारंटी है कि कल इन क्रोनी पूंजीपतियों के दबाव में विदेशी पूंजी या उद्योग को भारी नुकसान न उठाना पड़ जाये?

यह भी पढ़े :  Barabanki: छेड़छाड़ के मुकदमे में सुलह न करने पर दबंगों ने वादिनी के अपहरण का किया प्रयास, थाने पर नही हुई सुनवाई, पीड़िता ने एसपी से लगाई न्याय की गुहार

ये वे सवाल हैं, जो 1991 से उदारीकरण की पूरी पहल पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा करने वाले हैं। लोग तो अब यहां तक कहने लगे हैं कि रूस में भी पुतिन के शासन में क्रोनी पूंजी को खुलेआम बढ़ावा दिया गया, लेकिन वहां पर भी भारत की तरह एक-दो क्रोनी पूंजीपति की जगह कई क्रोनी पूंजीपति अपना वजूद रखते आये हैं। यह स्थिति भारत में विदेशी पूंजी निवेश की संभावना पर सबसे बड़ा रोड़ा साबित होने जा रहे हैं।
इस वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी की रफ्तार अनुमानित 7% से घटकर 5.4% हो चुकी है, जो आरबीआई को अपने अनुमानित 7.2% ग्रोथ रेट से 6.5% पर आने के लिए मजबूर कर चुकी है। कई अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनने का सपना भी 2027 से खिसककर 3 साल आगे जा चुका है। लेकिन अब जब दुनिया इस नए यथार्थ से ऊभ-चूभ हो रही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था और राजसत्ता पूरी तरह से एक-दो भारतीय पूंजीपतियों की चाकरी कर रही है, तो ऐसे में उनके लिए भारतीय बाजार में निवेश हाई रिस्क की श्रेणी में चला जाता है। इस नयी रौशनी में भारतीय अर्थव्यवस्था का क्या हाल होने जा रहा है, इसके बारे में अभी कयास लगाना शेष है।
रविन्द्र पटवाल
लेखक रविंद्र पटवाल ‘जनचौक’ संपादकीय टीम के सदस्य हैं।
Barabanki Express
Author: Barabanki Express

Barabanki Express News 24×7 is the most credible hindi news portal of District Barabanki. pls follow to get updates what's happening around ur City and District

19502
आपकी राय

बाराबंकी 53 लोकसभा क्षेत्र से आप किस प्रत्याशी को अपने सांसद के तौर देखना पसंद करते हैं ?

और पढ़ें

error: Content is protected !!