इन अमरीकियों ने क्या हद ही नहीं कर रखी है। चोरी तो चोरी, ऊपर से सीनाजोरी और। बताइए, मोदी जी की सरकार के ही खिलाफ षडयंत्र रच रहे हैं। षडयंत्र भी कोई ऐसा-वैसा नहीं। सिर्फ बदनाम करने या शर्मिंदा करने का षडयंत्र नहीं। बाकायदा सरकार को अस्थिर करने का षडयंत्र। और कोई एक बार का षडयंत्र नहीं कि कोई मान ले कि संयोग से, अनजाने में या गलती से कुछ हो गया होगा। बार-बार, लगातार षडयंत्र। षडयंत्र पर षडयंत्र। कभी पेगासस का षडयंत्र रचने के प्रचार का षडयंत्र। कभी रफाल की खरीद में घपले-घोटाले के प्रचार का षडयंत्र। कभी देश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचारों की अफवाहें फैलाने का षडयंत्र। कभी भारत में प्रेस की स्वतंत्रता गायब हो जाने के दुष्प्रचार का षडयंत्र। कभी मोदी जी के राज में भूख बढ़ने के कुप्रचार का षडयंत्र।
और तो और, भाई लोगों ने मोदी जी-शाह जी के राज में डेमोक्रेसी के गायब हो जाने के प्रचार तक का षडयंत्र कर के देख लिया। और वह तो ट्रम्प से मोदी जी की दोस्ती काम आ गयी और लगता है कि ट्रम्प ने चुप करा दिया, वर्ना एलन मस्क ने तो ईवीएम के हैक हो सकने का भी एलान कर दिया था। नहीं समझे — अरे मोदी जी की गद्दी ही चोरी की होने तक के इल्जाम का षडयंत्र!
पर इन सब षडयंत्रों से मोदी जी की सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा। असर क्या पड़ता, उसने तो होठों पर एक उफ तक नहीं आने दी। अमरीकियों से जरा सी शिकायत तक नहीं की। उल्टे हर बार अमरीकियों का स्वागत मुस्कुरा कर पान पराग के साथ किया गया। दस साल में अमरीकियों के यहां इतनी आवा-जाही की, इतनी आवा-जाही की कि नई दिल्ली और वाशिंगटन का अंतर ही मिटता लगने लगा। सारी दुनिया कहने लगी कि मोहब्बत हो तो ऐसी। मोहब्बत की थी तो, अमरीका जो भी कहे, भारत करने को तैयार हो जाए। वो कहे चीन को दुश्मन मानो, भारत ललकार के दिखाए। वो कहे मुझसे ही हथियार खरीदो, भारत आर्डर बनाकर ले जाए। वह कहे ईरान से तेल मत खरीदो, भारत ईरान से तेल के मामले में कुट्टी कर आए। वह कहे इस्राइल से पक्की वाली दोस्ती कर लो, भारत उससे भी मोहब्बत की कसमें खाए और फिलिस्तीनियों को जीभ चिढ़ाए। और तो और, एक-दूसरे के लिए, चुनाव प्रचार भी करने लगे। यह दूसरी बात है कि मोदी जी ने प्रचार तो ईमानदारी से किया, पर अमरीकी पब्लिक ने ही उस बार ट्रम्प को हरा दिया। हां! अगले ही चुनाव में अमरीकी पब्लिक ने अपनी गलती दुरुस्त कर ली और ‘‘फिर ट्रम्प सरकार’’ की मोदी जी की इच्छा भी पूरी कर दी।
फिर भी अमरीकियों ने दगा की। दगा भी ऐसी-वैसी नहीं, जानमारू षडयंत्र। जब तक उनके षडयंत्र के निशाने पर मोदी जी की सरकार रही, मोदी जी ने परवाह नहीं की। उनके षडयंत्र के निशाने पर जनतंत्र से लेकर भूख तक के मामले में भारत की शान रही, तब भी मोदी जी ने परवाह नहीं की। लेकिन, अब पानी सिर से ऊपर निकल गया है। अब वे भारत की आत्मा पर प्रहार कर रहे हैं। हमारी पहचान के चिन्हों पर प्रहार कर रहे हैं। वे तो हमारे राष्ट्रीय सेठ की धन-दौलत पर प्रहार करने तक चले गए हैं। और प्रहार भी सिर्फ प्रचार के माध्यम से नहीं कर रहे हैं। प्रहार सिर्फ हिंडनबर्ग वाले घातक प्रचार का भी नहीं कर रहे हैं, जिसने राष्ट्रीय सेठ के अरबों डालर डुबो दिए थे। अब तो वे सीधे-सीधे मामले-मुकद्दमे वाला प्रहार कर रहे हैं। रिश्वतखोरी के खाते खोल रहे हैं, कि भारत में मोदी जी के विरोधी शोर मचाएं। धोखाधड़ी और ठगी के लिए अपने यहां वारंट निकाल रहे हैं। मोहब्बत में खटास भी पैदा हो जाए, तो ऐसे षडयंत्र कौन करता है, जी !
अमरीका वाले अगर यह सोचते हैं कि मोदी जी का भारत उनका हरेक षडयंत्र मुस्कुरा का झेल जाएगा, तो यह उनकी गलती है। ये मोदी का भारत है। उसने इतने षडयंत्र झेल लिए, इसे ही उन्हें बहुत गनीमत समझना चाहिए। पर यह षडयंत्र, स्वीकार नहीं किया जाएगा। कोई भी, पक्के से पक्का दोस्त भी, अगर राष्ट्र सेठ जैसे हमारे राष्ट्रीय चिन्हों को हाथ लगाएगा, तो उसका हाथ भारत के विक्षोभ के ताप से जल जाएगा। अमरीकियों के लिए अब भी समय है, इस षडयंत्र से हाथ खींच लें। मामला-मुकद्दमा ले-दे कर रफा-दफा कर दें। भारत में घूस लेने-देेने के मामले को, अपने पश्चिमी पैमानों से जांचने से बाज आएं। जब लेने-देने का मामला हमारे देश का है, घूस लेने-देने वाले हमारे देश के हैं, तो घूस को विदेशी पैमाने से क्यों देखा जाना चाहिए? सच पूछा जाए, तो अमरीकियों को तो इस मामले में पड़ना ही नहीं चाहिए था। आखिर, मोहब्बत का कुछ ख्याल तो उन्हें भी करना चाहिए था।
अब भी मोहब्बत का ख्याल है, तभी तो मोदी जी अब भी चुप हैं। जरूर सोच रहे होंगे कि उनकी ही मोहब्बत में कोई कमी रह गयी होगी, जो अमरीकियों से प्यार का यह सिला मिला।
अब तक निशिकांत दुबे, संबित पात्रा, सुधांशु त्रिवेदी आदि ही बोल रहे हैं। और वह भी संसद में। और वह भी राहुल गांधी और विपक्ष पर हमला करने की कोशिश में। पर जिस दिन मोदी जी का मुंह खुल गया, उस दिन अमरीकियों के लिए मुंह छुपाना मुश्किल हो जाएगा। मोदी जी ऐसी-ऐसी सुनाएंगे, ऐसी-ऐसी सुनाएंगे कि सारी दुनिया के मुंह खुले के खुले रह जाएंगे। आखिरकार, राष्ट्रीय सेठ पर हमला, तो मोदी जी पर ही हमला है। और मोदी पर हमला, यानी भारत पर हमला। यानी राष्ट्रीय सेठ पर हमला, भारत पर हमला है। और मोदी जी के भारत पर कोई हमला करे, फिर भले ही वह कितना ही प्रिय ही क्यों न हो, मोदी जी उसे कभी नहीं छोड़ते हैं ; पार्टी में लाकर छोड़ते हैं या बर्बाद कर के। माना कि यह सब अमरीकियों के साथ नहीं किया जा सकता है, फिर भी पुरानी मोहब्बत की खातिर ट्रम्प जी भी, राष्ट्रीय सेठ पर मामले-मुकद्दमे खत्म करा के, मोदी जी की मोहब्बत की पार्टी में तो अमरीका की वापसी करा ही सकते हैं। खैर तब तक — चलो बुलावा आया है, राष्ट्र सेठ ने बुलाया है !
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व्यंग्यकार राजेन्द्र शर्मा वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।
Author: Barabanki Express
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