बाराबंकी।
एशियाड रजत पदक विजेता और जख्मी होने के चलते ओलपिंक 2024 के क्वार्टर फाइनल से बाहर होकर मेडल से चूंक जाने वाली अंतरराष्ट्रीय कुश्ती खिलाड़ी निशा दहिया के हौसले आज भी बुलंद है। अखाड़े में शेरनी की तरह सिंघनाद करने वाली रेसलर निशा दहिया कहती है कि ओलपिंक में मेडल लाकर ही दम लेंगें। इस ड्रीम के लिये रातदिन एक कर देंगे। वह कहती है सभी का एक ड्रीम होता है और हम उसी ड्रीम के लिये ही जीते है।
रेसलर निशा दहिया गुरुवार को बाराबंकी जिले के निजी विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम को संबोधित करते हुए छात्रों का मनोबल बढ़ाते हुए उन्हें आगे बढ़ने के लिये लिये प्रेरित कर रही थी। कार्यक्रम के दौरान निशा दहिया ने अपने करियर की चुनौतियों और संघर्षों के विषय में मीडिया से बेबाक बातचीत भी की। निशा दहिया ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि मैं कई साल लखनऊ में रह चुकी हूँ लखनऊ मुझे मेरे घर जैसा लगता है, मेरी रेसलिंग की शुरुआत भी लखनऊ से ही हुई थी। हम दो बहनें है, भाई नहीं है। पापा का सपना था कि मैं लड़कों की तरह खेलूं और आगे बढूं। पापा का सपना पूरा करने के लिये ही मैं रेसलिंग में आई हूँ। मैंनें पूरी कोशिश की है अपने देश और अपने माँ बाप का नाम रोशन करने के लिये और आगे भी मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि मैं ओलंपिक में मेडल दूँ और सबके सपनों को पूरा करूँ।
इंटरनेशनल खेलों में खिलाड़ियों को पर्याप्त सुविधाएं न मिलने के सवाल पर सुश्री निशा दहिया ने कहा कि जैसे जैसे थोड़ा थोड़ा बदलाव हो रहा है सुविधाएं भी आ रही है। मैंने देखा है कि हरियाणा में रेसलिंग और स्पोर्ट्स का गढ़ है। मैं वहाँ से निकलकर आयी हूं और स्ट्रगल फेस किया है। धीरे धीरे सुविधाएं बढ़ रही है। मैं चाहूँगी कि स्पोर्ट्स में सुविधाओं को और बढ़ाया जाए। स्पोर्ट्स खेलों में खासकर लड़कियों को और अधिक प्रोत्साहित करने की जरूरत है। जब लड़कियों को आगे बढ़ाएंगे तो देश का भी नाम रोशन होगा। निशा दहिया ने युवाओं को सन्देश देते हुए कहा कि सभी का एक ड्रीम है और उसी ड्रीम के लिये हम सब जीते है। सबका ड्रीम अलग अलग होता है। मैं भी ड्रीम के लिये जी रही हूँ। ओलंपिक में मेडल देने की मेरी पूरी कोशिश रहेगी ताकि मैं देश को प्राउड करा सकूँ और अपने माता पिता को भी।
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तमाम माता पिता गांवों में बालिकाओं को पढ़ने नहीं भेजते है ऐसे में बेटियों को खेल के क्षेत्र में मुकाम हासिल करने की चुनौतियों के सवाल पर रेसलर निशा दहिया ने कहा कि मुझे बड़ा दुःख होता है जब सुनती हूं कि कहीं कहीं बेटियों को पढ़ने को नहीं मिल रहा है, खेलने को नहीं मिल रहा है। ऐसे में माँ बाप को ही बेटियों के लिये आगे बढ़ना पड़ेगा ताकि वह एक दिन सबका नाम रोशन कर सके। निशा ने कहा कि लड़कियों को जरूर पढ़ना चाहिये क्योंकि लड़कियां इंडिपेंडेंट होंगी तो देश भी इंडिपेंडेंट होगा। मेरी सभी से अपील है कि माँ बाप अपनी बेटियों को पढ़ने के लिये भेजे और स्पोर्ट्स के लिये भेजे।
खिलाड़ी जब देश के लिये मेडल लेकर आते है तब सब उनके लिये तालियां बजाते है और जब उनके साथ अनहोनी होती तो सब क्यों चुप हो जाते है इस सवाल पर निशा दहिया ने कहा कि यह बात सच है कि जब मैंने खेल की शुरुआत की तब केवल माँ बाप साथ थे, आज बहुत से लोग साथ है। कभी कभी निराशा के पल भी आते है। अब खेलों को काफ़ी बढ़ावा मिल रहा है। ओलंपिक और पैराओलंपिक में इस बार काफ़ी सारे मेडल आये है। धीरे धीरे बदलाव आ रहा है लेकिन मैं चाहूँगी कि और अच्छे से बदलाव आए।
रिपोर्ट – सरला यादव
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Author: Barabanki Express
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