बाराबंकी।
“हर चुनाव के बाद बड़ी विफलता की स्थिति में दल चिंतन मनन करता है कि कहां पर चूक हुई या कौन और क्यों नाराज हुए। यही फिक्र भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी करनी होगी कि जो पसमांदा मुसलमान भाजपा को कामयाब बनाने के लिए साथ आया, वही 2024 में क्यों बिखर गया। पार्टी स्तर पर ही नही बल्कि पसमांदा समाज की ठेकेदारी का जिम्मा लिए बैठे चेहरों से भी निपटना होगा।”
यह बात आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसीम राईन ने अपने बयान में कही। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के जिस पसमांदा मुसलमान ने भाजपा सरकार, संगठन में बगैर कोई हिस्सेदारी मिले, सिर्फ सपा, कांग्रेस जैसे पार्टियों की झूठ, फरेब, मक्कारी आदि से त्रस्त होकर, इनके विरोध में 2019 में भाजपा को 8 प्रतिशत और 2022 के विस चुनाव में भाजपा को 6 प्रतिशत वोट दिया और आने वाले वक्त में यह प्रतिशत और बढ़ता। उसी पसमांदा समाज ने उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में मंत्री, आयोगों, निगमों और संगठन आदि में आबादी के अनुपात में ना सही, लेकिन कुछ हिस्सेदारी पाकर भी औसत 1 प्रतिशत वोट देना ठीक नहीं समझा। यह बेहद गम्भीर विषय है जिस पर बड़ी चर्चा व निर्णय जरूरी हो जाते हैं।
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने सवाल किया कि क्या यह भाजपा द्वारा पसमांदा के बीच सालों से काम कर रहे असरदार सामाजिक संगठनों, प्रभावी नेताओं की उपेक्षा और बगैर उनके सलाह, मशविरे के पसमांदा समाज पर, पसमांदा के नाम पर जबरन थोपे गए जनाधार विहीन नेताओं और पसमांदा के नए नवेले कुछ सामाजिक संगठनों के बड़बोले, ठेकेदार नेताओं से, उसकी नाराजगी का नतीजा था। क्या भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को, पसमांदा मुसलमानों की 2019, 2022 की अपेक्षा 2024 के लोकसभा चुनाव में,भाजपा से बढ़ी इनकी दूरी के कारणों और अपने पसमांदा नेताओं की बड़ी विफलता पर गहन चिंतन, मनन नहीं करना चाहिए। तो जवाब हां में है। भाजपा संगठन को इस अहम विषय पर विचार करने के साथ ही व्यापक समीक्षा करनी होगी क्योंकि अभी वक़्त है और बहुत कुछ सुधार किया जा सकता है।
रिपोर्ट – मन्सूफ़ अहमद
Author: Barabanki Express
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