Barabanki:
बाराबंकी के सुबेहा थाना क्षेत्र के गेरावा गांव में रास्ते के विवाद पर एक साल से निष्क्रिय पड़े अधिकारी तब जागे जब मामला विधान परिषद में उठा। एडीएम अरुण कुमार सिंह और एएसपी रितेश कुमार ने मौके पर पहुंचकर जांच की और जल्द निस्तारण का आश्वासन दिया।

बाराबंकी, उत्तर प्रदेश।
ज़िले के सुबेहा थाना क्षेत्र के गे़रावा गांव में बीते एक साल से चल रहे दलित परिवार और ग्राम प्रधान के बीच रास्ते के विवाद ने आखिरकार शासन-प्रशासन की नींद तोड़ दी। मामला तब सुर्खियों में आया जब इस विवाद की गूंज उत्तर प्रदेश विधान परिषद तक पहुंची। इसके बाद प्रशासन हरकत में आया और मंगलवार को एडीएम अरुण कुमार सिंह व एडिशनल एसपी रितेश कुमार भारी पुलिस बल के साथ गांव पहुंचे।
अधिकारियों ने पीड़ित परिवार और ग्रामीणों के बयान दर्ज करते हुए जल्द समाधान का आश्वासन दिया। दिलचस्प बात यह रही कि एडीएम और एएसपी के मौके पर पहुंचने की जानकारी हैदरगढ़ के एसडीएम व सीओ तक को नहीं मिल सकी, जिससे प्रशासनिक समन्वय पर सवाल खड़े हो गए।
सालभर से चल रहा था रास्ते को लेकर विवाद
गांव की रहने वाली मिथिलेश कुमारी पत्नी छंगूलाल कन्नौजिया ने बताया कि ग्राम प्रधान अनुज बाजपेई ने सार्वजनिक रास्ते पर अवैध रूप से दीवार खड़ी कर दी, जिससे उनके पुश्तैनी रास्ते को बंद कर दिया गया।
ग्रामीणों का कहना है कि इस रास्ते से पहले चारपहिया वाहन और बैलगाड़ियां आसानी से निकलते थे, लेकिन अब रास्ता इतना सकरा हो गया है कि दोपहिया वाहन और पैदल राहगीरों तक का निकालना मुश्किल हो गया है।
विधान परिषद तक ऐसे पहुंचा मामला
पीड़िता ने बताया कि उसने पिछले एक साल में स्थानीय पुलिस, तहसील हैदरगढ़ से लेकर जिला प्रशासन तक शिकायतें कीं, लेकिन किसी ने सुनवाई नहीं की।

निराश होकर उसने लखीमपुर के भाजपा एमएलसी अनूप गुप्ता से न्याय की गुहार लगाई। एमएलसी ने यह मामला विधान परिषद में उठाया, तो नींद से बेदार हुए जिला प्रशासन ने तत्काल कार्रवाई करते हुए अधिकारियों को मौके पर भेजा।
प्रशासनिक अफसरों की “कुंभकर्णी नींद” पर उठे सवाल
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि प्रशासन ने समय रहते मामले का संज्ञान ले लिया होता तो मामला विधान परिषद तक नहीं पहुंचता।
अब जब मामला सदन में उठा और सरकार की छवि पर सवाल खड़े होने लगे, तब जाकर अधिकारियो की कुंभकर्णी नींद टूटी और वो हरकत में आए।
एडीएम अरुण कुमार सिंह और एएसपी रितेश कुमार ने आनन फानन मौके पर पहुंचकर रास्ते का निरीक्षण किया, ग्रामीणों से बातचीत की और आश्वासन दिया कि “मामले का जल्द निस्तारण किया जाएगा।”
प्रशासनिक जवाबदेही की परीक्षा
यह पूरा मामला प्रशासनिक कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। एक साल तक पीड़ित परिवार न्याय के लिए दर-दर भटकता रहा, लेकिन सुनवाई तब हुई जब मामला विधान परिषद के पटल तक पहुंच गया।
ग्रामीणों का कहना है कि अधिकारियों की निष्क्रियता और स्थानीय स्तर पर लापरवाही ने इस विवाद को और गहरा दिया। अब देखना यह है कि जांच के बाद वास्तव में कार्रवाई होती है या फिर यह मामला भी आश्वासन के बोझ तले दबकर रह जाएगा।
📜 रिपोर्ट – कामरान अल्वी
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Author: Barabanki Express
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