देवा-बाराबंकी।
“जो रब है वही राम है” का संदेश देने वाले सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की बाराबंकी के देवा क़स्बे में स्थित दरगाह की होली गंगा जमुनी तहजीब के साथ आपसी भाई चारे की एक बड़ी मिसाल पेश करती है, यहां उड़ने वाले रंगों में नफरत के रंग की कोई जगह नज़र नहीं आती। यहाँ होली मनाने के लिए देशभर से हर एक मजहब के लोग पहुंचते हैं और यहाँ से दुनिया को कौमी एकता की डोर में पिरोने का संदेश लेकर वापस जाते है।
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हाजी वारिस अली शाह का जन्म 19वीं शताब्दी में हुसैनी सय्यदों के एक परिवार में हुआ था। “जो रब है वही राम है” का संदेश देने वाली सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के अनुयायियों में सभी धर्म के लोग थे। इसलिए हाजी वारिस अली शाह भी हर वर्ग के त्योहारों में बराबर भागीदारी करते थे। वह होली के मौक़े पर अपने हिंदू अनुयायियों के साथ गुलाब की होली खेल कर सूफी परंपरा का इजहार करते थे। उनके निधन के करीब 100 साल बीत जाने के बाद उनकी दरगाह पर यह परंपरा आज भी जारी है।
नगर पंचायत देवा के चेयरमैन हारून वारसी बताते है कि दरगाह परिसर में रंग-बिरंगे गुलाल और गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों से खेली जाने वाली होली को देखने और खेलने के लिए होलिका दहन वाली रात ही जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी, दिल्ली, बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान सहित कई राज्यों से सभी धर्मों के लोग जुटते हैं। सुबह कौमी एकता गेट पर मटकी को फोड़ने के बाद होली का जुलूस गाजे बाजे के साथ प्रारम्भ होता है। जुलूस देवा कस्बे में घूमता हुआ दरगाह परिसर में गुलाल और गुलाब की पंखुड़ियों से होली खेलकर व एक दूसरे से गले मिलकर भाई चारे का संदेश देते हुए समाप्त होता है।
रिपोर्ट – मन्सूफ अहमद / सरला यादव
Author: Barabanki Express
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