Barabanki Express
बाराबंकी में रोडवेज बस पर पेड़ गिरने से 5 की मौत। 3 साल से की जा रही शिकायतों के बावजूद प्रशासन की लापरवाही ने ली मासूम जानें। पढ़ें पूरा मामला

बाराबंकी, उत्तर प्रदेश।
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में शुक्रवार सुबह एक दर्दनाक हादसे ने पांच परिवारों को मातम में डुबो दिया। रोडवेज की अनुबंधित बस पर अचानक एक भारी-भरकम, पुराना गूलर का पेड़ गिर पड़ा। इस हृदयविदारक हादसे में चार महिलाओं समेत पांच लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि कई यात्री गंभीर रूप से घायल हो गए हैं।

हालांकि यह हादसा अचानक हुआ, लेकिन इसकी चेतावनी पहले ही दी जा चुकी थी। जिले की सड़कों पर खड़े जर्जर और सूखे पेड़ों को लेकर ‘बाराबंकी एक्सप्रेस’ ने 22 जून 2025 को विशेष रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें साफ तौर पर यात्रियों की जान को खतरे में बताया गया था। मगर प्रशासन और संबंधित विभागों ने इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया — नतीजा, आज पांच निर्दोष लोगों की जान चली गई।
22 जून 2025 को बाराबंकी एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट
जिले की हर सड़क पर मौत का साया, मगर लापरवाह हैं जिम्मेदार
बाराबंकी की प्रमुख सड़कों — लखनऊ-अयोध्या हाईवे, बाराबंकी-हैदरगढ़ रोड, सफदरगंज-बदोसराय रोड, हरख-सतरिख रोड और दर्जनों अन्य मार्गों पर ऐसे हजारों पेड़ खड़े हैं, जो किसी भी वक्त मौत बनकर गिर सकते हैं।
पिछले तीन वर्षों से लगातार शिकायतें, आरटीआई और समाचार कवरेज के बावजूद, जिला प्रशासन, वन विभाग और वन निगम की लापरवाही जस की तस बनी रही। हर बार फाइलें चलती रहीं, लेकिन पेड़ वहीं के वहीं खड़े रहे।

प्रशासनिक निष्क्रियता: शिकायतें, आदेश, पर कोई कार्रवाई नहीं
स्थानीय अधिवक्ता अजय सिंह वर्मा वर्ष 2022 से लगातार इस विषय पर संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने DM, CM, वन विभाग और वन निगम तक 12 से अधिक शिकायतें भेजीं। मई 2025 में, जिलाधिकारी ने आखिरकार प्रभागीय वनाधिकारी (DFO) से जवाब मांगा।
DFO की रिपोर्ट में भी माना गया कि उन्होंने 6 महीनों में वन निगम को 13 पत्र भेजे, लेकिन निगम की ओर से कोई कार्यवाही नहीं हुई।

सूत्रों के अनुसार, वन निगम मुख्य रूप से सड़क चौड़ीकरण परियोजनाओं के लिए आवंटित मार्गों पर पेड़ों की कटान को प्राथमिकता देता है। हर साल कोई न कोई नई सड़क चौड़ीकरण परियोजना आ जाती है, जिसके कारण निगम उधर ही व्यस्त रहता है।
वहीं, डीएफओ स्तर पर बहुत खतरनाक पेड़ों का निस्तारण संभव है, लेकिन वे इस जिम्मेदारी को वन निगम के पाले में डालते रहे— और आखिरकार आज पांच बेगुनाह लोगों को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।
हादसे में इनकी हुई मौत

विभागीय खींचतान में पिसती आम जनता
इस हादसे ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि जब तक किसी की जान न जाए, प्रशासनिक मशीनरी नहीं जागती। “दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय” — कबीर की यह साखी यहां सटीक बैठती है, जहां दो विभागों की खींचतान में मासूम नागरिकों की ज़िंदगी पिस गई।
आज की यह त्रासदी न केवल एक हादसा है, बल्कि एक नंगा सच है उस लापरवाह सिस्टम का, जो कागज़ों में हर कार्यवाही करता है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं होता।
क्या अब भी जागेगा सिस्टम?
जिले के विभिन्न मार्गों पर अभी भी सैकड़ों जर्जर और सूखे पेड़ मौत का साया बनकर खड़े हुए हैं। आज हुए दिल दहलाने वाले हादसे के बाद यह सवाल अब हर नागरिक के मन में है कि क्या अब भी प्रशासन और वन विभाग जागेगा? क्या जिले के अन्य जर्जर पेड़ों को चिन्हित कर हटाया जाएगा या फिर अगली त्रासदी का इंतजार किया जाएगा?


रिपोर्ट – कामरान अल्वी

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Author: Barabanki Express
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