UP News: बाराबंकी में ‘रामराज’ पर सवाल! रामनगर में दलित की जमीन हड़प रहे दबंग, शिकायत के बावजूद पुलिस-प्रशासन मौन; हैदरगढ़ में भूमाफियाओं का आतंक, ‘भ्रष्टाचार की गंगा’ में डूबा सिस्टम!

 


बाराबंकी, यूपी।
जिले में गरीबों और लाचारों की जमीन पर दबंगों का क़ब्ज़ा और प्रशासन की कथित उदासीनता ने ‘रामराज’ के दावों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां एक नहीं, बल्कि दो ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां पीड़ित न्याय के लिए दर-दर भटक रहे हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही। सवाल उठ रहे हैं कि क्या सिस्टम सिर्फ़ दबंगों और भूमाफियाओं का साथ दे रहा है, और क्या इसके पीछे किसी बड़ी ‘तरावट’ या राजनीतिक संरक्षण का हाथ है?
रामनगर: दलित की पुश्तैनी जमीन पर दबंगों का क़ब्ज़ा और ‘जंगलराज’
पहला मामला थाना व तहसील रामनगर क्षेत्र के ग्राम तहापुर मजरे तिलौटा से जुड़ा है। यहां के निवासी संतोष कुमार पुत्र रामसेवक, एक गरीब दलित, की गाटा संख्या 393 के तहत 0.0190 हेक्टेयर पुश्तैनी भूमि है। संतोष की ख़राब आर्थिक स्थिति भांपकर, गांव के दबंगों की गिद्ध दृष्टि इस ज़मीन पर पड़ी। उन्होंने संतोष के विरोध को दरकिनार करते हुए ज़बरदस्ती ज़मीन पर पक्का निर्माण शुरू कर दिया।
जब संतोष और उनके परिवारजनों ने रोकने की कोशिश की, तो उनके बताए अनुसार, आधा दर्जन से अधिक दबंगों ने उन्हें बुरी तरह मारा-पीटा, जाति सूचक गंदी गालियां दीं और जान से मारने की धमकी भी दी। किसी तरह जान बचाकर पीड़ित परिवार ने स्थानीय पुलिस से न्याय और सुरक्षा की गुहार लगाई।
हैरानी की बात यह है कि तमाम कागजात और पिटाई-धमकी के बावजूद रामनगर तहसील प्रशासन और स्थानीय पुलिस ने न तो कोई सुनवाई की और न ही निर्माण रुकवाया। दबंगों के खिलाफ मुकदमा तक दर्ज नहीं किया गया! इस सवाल का जवाब किसी भी ज़िम्मेदार अधिकारी के पास नहीं है। ऐसे में ‘रामराज्य’ की बात करना, घोर कलियुग में ‘राम’ के नाम का अनर्थ करना जैसा लगता है, जहां भ्रष्टाचारी तंत्र ने न्याय को पैरों तले रौंद दिया है। न्याय न मिलने पर, पीड़ित संतोष कुमार ने अब जिला मुख्यालय पहुंचकर एसपी को शिकायती पत्र दिया है और अवैध क़ब्ज़ा हटवाने व आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
हैदरगढ़: डीएम के आदेश के बावजूद भूमाफियाओं का तांडव, ‘भ्रष्टाचार की गंगा’ में डूबा प्रशासन!
दूसरा मामला हैदरगढ़ नगर पंचायत क्षेत्र का है, जो और भी चौंकाने वाला है। यहां अब्दुल मुईन पुत्र अब्दुल मुईद अपनी पुश्तैनी जमीन (गाटा संख्या 970) को दबंगों और आपराधिक प्रवृत्ति के भूमाफियाओं से बचाने के लिए एक साल से संघर्ष कर रहे हैं। पीड़ित का आरोप है कि दबंगों ने आधी ज़मीन पट्टेदारों से ख़रीदकर पूरी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने का प्रयास किया है, और तो और, उनकी हिस्से की ज़मीन से ज़बरदस्ती रास्ता निकालने की साज़िश नगर पंचायत प्रशासन की मिलीभगत से चल रही है।
पीड़ित अब्दुल मुईन ने दो-दो बार डीएम शशांक त्रिपाठी से और 23 जून को एसपी अर्पित विजयवर्गीय से मिलकर गुहार लगाई। उन्होंने बताया कि 12 जून को डीएम ने एसडीएम हैदरगढ़ को बिना लेआउट स्वीकृत प्लाटिंग को ध्वस्त करने का निर्देश दिया था, लेकिन इसके बावजूद भूमाफियाओं ने डीएम के निर्देश की धज्जियां उड़ाते हुए उसी गाटा संख्या 970 में पीड़ित के हिस्से वाली भूमि से दो-दो रजिस्ट्री कर दीं।
यही नहीं, प्रशासन की मिलीभगत का आलम यह है कि जिन राजस्व अधिकारियों-कर्मचारियों के पास 12 जून के डीएम निर्देश के बावजूद पीड़ित की ज़मीन की पैमाइश कर हदबंदी के लिए समय नहीं था, वही 24 जून को भूमाफियाओं की इसी अवैध प्लाटिंग की पैमाइश करने पहुंचे और निशान भी लगवाए, जबकि न तो लेआउट स्वीकृत है और न ही कोई अन्य वैधानिक स्वीकृति। हद तो तब हो गई जब 13 जून को दो रजिस्ट्री के बाद 2-3 अन्य रजिस्ट्री भी पीड़ित के हिस्से की भूमि से कर दी गईं।
सवाल बड़े हैं: क्या दबंगों को है राजनीतिक संरक्षण?
ग्रामीणों के ज़ेहन में अब यह सवाल घूम रहा है कि क्या यह ‘तरावट’ (भ्रष्टाचार का पैसा) ज़िला प्रशासन तक पहुंच रही है, जिसके चलते पीड़ितों और यहां तक कि पत्रकारों के सीयूजी पर कॉल करने के बावजूद न तो अधिकारी बात कर रहे हैं और न ही आश्वासन के बावजूद पीड़ितों को न्याय मिल पा रहा है।
सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि कहीं इन दबंगों और भूमाफियाओं को किसी राजनीतिक पार्टी के उन बड़े नेताओं का संरक्षण तो नहीं, जो खुद को ईमानदार होने का तमगा लगाकर चलते हैं? क्या पार्टी भले ही बदनाम हो जाए, लेकिन उनके ‘वसूली भाईयों’ पर कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए?
यह दो मामले तो महज बानगी भर है जिले में ऐसे सैकड़ों मामले है जहां पीड़ित अपनी पैतृक संपत्ति से लेकर सरकारी जमीनों पर हो रहे अवैध कब्जों की शिकायत लेकर तहसील से लेकर जिलाधिकारी तक दौड़ लगा रहे है लेकिन कार्रवाई नहीं हो रही है। यह हाल तब है जब अतीत में संपत्ति विवाद को लेकर अमरदीप गुप्ता जैसे हत्याकांड भी सामने आए हैं, जहां लोग अपनी जान है तो जहान है मानकर चुपचाप अपनी संपत्ति गंवा देते हैं। लेकिन अब लोग खुलकर कह रहे हैं कि “अगर ये रामराज्य है, तो रावणराज्य ही ठीक था।”
रिपोर्ट – कामरान अल्वी 

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Author: Barabanki Express

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