
लखनऊ, उत्तर प्रदेश।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब व्यक्तिगत हमलों की एक नई और कटु परंपरा देखने को मिल रही है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के जन्मदिन के मौके पर भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के एक नेता द्वारा राजधानी लखनऊ में लगाए गए एक विवादास्पद पोस्टर ने सियासी पारे को चढ़ा दिया है। लखनऊ के प्रमुख चौराहों पर लगे इस पोस्टर में भाजयुमो के प्रदेश महामंत्री अमित त्रिपाठी ने अखिलेश यादव को ‘जन्मदिन की शुभकामनाएं’ देते हुए, तीखे व्यंग्य के साथ बेहद गंभीर और अशोभनीय आरोप जड़ दिए हैं, जिससे प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में हड़कंप मच गया है।
पोस्टर में दर्ज ‘आपत्तिजनक’ और ‘राजनीतिक’ संदेश:
यह पोस्टर अपनी भाषा और सामग्री को लेकर विवादों के केंद्र में है। इसमें लिखा गया था:
“दलितों से लाभ लेने वाले, ब्राह्मणों के नाम पर वोट लेने वाले, पिछड़ों को सिर्फ वोट बैंक समझने वाले, गुंडे और बदमाशों की फौज के लीडर, माफियाओं का हर सुख-दुख में साथ देने वाले, उत्तर प्रदेश को आपराधिक प्रदेश में तब्दील करने वाले नेता श्री अखिलेश यादव जी को जन्म दिवस की ढेरों शुभकामनाएं।”
इतना ही नहीं, पोस्टर में एक और पंक्ति ने सियासी मर्यादा की सारी हदें पार करते हुए राजनीतिक विद्वेष को स्पष्ट किया:
“प्रभु श्री राम से कामना है कि प्रदेश की रक्षा और महिलाओं की सुरक्षा के लिए आपकी कभी सत्ता वापसी ना हो।”
सियासी घमासान और तीखी प्रतिक्रियाएं:
यह पोस्टर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होते ही, भाजपा और सपा के बीच जुबानी जंग तेज हो गई। भाजपा समर्थकों ने इसे ‘राजनीतिक व्यंग्य’ और ‘सत्ता पक्ष की प्रस्तावित सच्चाई’ बताते हुए अपने नेता का बचाव किया। वहीं, समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने इसे घृणित, अशोभनीय और राजनीतिक मर्यादा का खुला उल्लंघन करार दिया। सपा समर्थकों ने रोष व्यक्त करते हुए कहा कि “जन्मदिन जैसे व्यक्तिगत अवसर पर इस तरह की निम्न स्तर की राजनीति भाजपा की बौखलाहट और नैतिक पतन को दर्शाती है। अखिलेश यादव आज देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं, और उन पर इस तरह के व्यक्तिगत हमले उनकी बढ़ती स्वीकार्यता और जनाधार का सीधा परिणाम हैं।”
भाजयुमो नेता का तर्क और प्रशासन की त्वरित कार्रवाई:
भाजयुमो प्रदेश महामंत्री अमित त्रिपाठी, जिनका नाम पोस्टर पर अंकित था, ने अपने कृत्य का बचाव करते हुए मीडिया से कहा कि
“हमने जो लिखा है वह सत्य है। हम जनता के सामने उस कड़वी सच्चाई को उजागर कर रहे हैं, जिससे प्रदेश दशकों तक परेशान रहा। जनता को यह जानने का पूरा हक है कि किस नेता ने अपने कार्यकाल में प्रदेश को अपराधियों के हाथों में सौंपा था।”
पोस्टर में इस्तेमाल की गई भाषा की आपत्तिजनक प्रकृति और सार्वजनिक स्थानों पर बिना अनुमति के लगाए जाने के कारण, लखनऊ नगर निगम और पुलिस प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई की। कुछ ही घंटों के भीतर शहर के सभी सार्वजनिक स्थानों से इन विवादित पोस्टरों को हटा दिया गया। पुलिस का कहना है कि सार्वजनिक स्थानों पर इस तरह की सामग्री लगाने के लिए संबंधित अधिकारियों से अनुमति लेना अनिवार्य है। अनुमति के बिना पोस्टर लगाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
अखिलेश यादव की चुप्पी और राजनीतिक संदेश:
इस पूरे विवाद पर खुद अखिलेश यादव ने किसी भी प्रकार की सीधी प्रतिक्रिया देने से परहेज किया। हालांकि, अपने जन्मदिन के मौके पर लखनऊ स्थित समाजवादी पार्टी मुख्यालय में आयोजित समारोह में उन्होंने रक्तदान शिविर में हिस्सा लिया और एक बार फिर ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) समाज को एकजुट करने का आह्वान किया। उनकी यह प्रतिक्रिया राजनीतिक पंडितों द्वारा एक सधा हुआ कदम मानी जा रही है, जिससे उन्होंने विवादों से बचते हुए अपने मूल राजनीतिक एजेंडे पर कायम रहने का संदेश दिया।
यह घटना दर्शाती है कि आगामी चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश की राजनीतिक लड़ाई अब शाब्दिक मर्यादाओं को तोड़कर और अधिक व्यक्तिगत व आक्रामक होती जा रही है, जहाँ सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तनाव चरम पर है।
रिपोर्ट – नौमान माजिद
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Author: Barabanki Express
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