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बाराबंकी से चौंकाने वाला मामला – नगर पंचायत सुबेहा निवासी ने लेखपाल पर ₹10,000 छीनने और नायब तहसीलदार के साथ घर जाकर धमकाने का आरोप लगाया। डीएम ऑफिस में प्रार्थना पत्र लेने से इंकार होने के बाद पीड़ित ने डाक से शिकायत भेजी। पूरा मामला जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रहा है।

बाराबंकी, उत्तर प्रदेश।
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ज़िले में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पूरे जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। नगर पंचायत सुबेहा के पट्टी वार्ड निवासी राम कुमार ने आरोप लगाया है कि हल्का लेखपाल प्रणव शुक्ला ने 10 हज़ार रुपये ज़बरन छीन लिए। इस संबंध में पीड़ित ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी और एसडीएम हैदरगढ़ को शिकायती पत्र भेजकर न्याय की गुहार लगाई। लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि न्याय दिलाने के बजाय आरोपी लेखपाल खुद नायब तहसीलदार के साथ पीड़ित के घर पहुंचा और सुलह का दबाव बनाते हुए अंजाम भुगतने की धमकी दी।
डीएम दफ़्तर में भी नहीं सुनी गई फरियाद
पीड़ित जब जिलाधिकारी कार्यालय बाराबंकी पहुंचे तो वहां मौजूद एक महिला अधिकारी ने प्रार्थना पत्र पढ़ने के बाद लेने से ही इंकार कर दिया और उन्हें एसडीएम हैदरगढ़ के पास जाने को कह दिया। इससे हताश होकर पीड़ितो ने कलेक्ट्रेट में स्थित पोस्ट ऑफिस जाकर रजिस्टर्ड डाक से डीएम बाराबंकी को अपना शिकायत पत्र भेजा और एक प्रति एसपी कार्यालय में देने के बाद वापस लौट गए।

हल्का लेखपाल की दबंगई से जुड़ा मामला
राम कुमार का कहना है कि उनका छोटा भाई राजकुमार काफी समय से बीमार चल रहा है। उसके इलाज के लिए उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन गाटा संख्या 862 पर लगे जंगली पेड़ों को 10 हज़ार रुपये में बेचा था। 28 अगस्त को जब ठेकेदार पेड़ कटवा रहा था, तभी हल्का लेखपाल मौके पर पहुंचा और बंजर भूमि पर पेड़ काटने का मुकदमा दर्ज कराने की धमकी देते हुए उनसे 10 हज़ार रुपये छीन लिए।
28 अगस्त को ही राम कुमार ने मुख्यमंत्री, डीएम और एसडीएम हैदरगढ़ को पत्र भेजकर कार्रवाई की मांग की थी। इसके बाद 29 अगस्त को आरोपी लेखपाल और नायब तहसीलदार रामजी त्रिवेदी पीड़ित के घर पहुंच गए और सुलह समझौते और सादे कागज पर हस्ताक्षर का दबाव बनाने लगे। जब पीड़ित ने सुलह करने से इंकार किया तो उन्हें गंभीर अंजाम भुगतने की धमकी दी गई।

प्रशासन पर सवाल
धमकी से भयभीत पीड़ित 30 अगस्त को न्याय की आस में 50 किलोमीटर का सफर तय कर जब बाराबंकी जिला मुख्यालय स्थित डीएम ऑफिस पहुंचे तो वहां बैठी महिला अधिकारी द्वारा प्रार्थना पत्र ही लेने से इंकार कर दिया गया। सवाल यह उठता है कि जब जिला प्रशासन का दायित्व जनता की समस्याओं का समाधान करना है तो फरियादियों का प्रार्थना पत्र लेने से इंकार क्यों किया गया?
यह घटना न सिर्फ जिला प्रशासन की संवेदनहीनता को उजागर करती है बल्कि जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी के उन दावों की भी पोल खोलती है जिनमें हाथ के हाथ जनता की शिकायतों के निस्तारण का दावा किया जाता है।

अदम गोंडवी की पंक्तियों से चरितार्थ
इस पूरे घटनाक्रम ने मशहूर जनकवि अदम गोंडवी की उन पंक्तियों को फिर से जीवंत कर दिया है—
“तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है,
मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है।”
पीड़ितों को कब मिलेगा न्याय?
अब देखना होगा कि मुख्यमंत्री और जिलाधिकारी इस गंभीर प्रकरण पर क्या कदम उठाते हैं। फिलहाल पीड़ित परिवार न्याय की आस लगाए बैठा है और यह घटना जिला प्रशासन की कार्यशैली पर गहरे सवाल छोड़ गई है।
रिपोर्ट – कामरान अल्वी
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Author: Barabanki Express
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