Barabanki:
बाराबंकी में आरोपी लेखपाल को ही बना दिया जांच अधिकारी। जनसुनवाई पोर्टल पर फर्जी आख्या, अधिकारियों की लापरवाही से पीड़ित ने सीएम-लोकायुक्त से गुहार लगाई।

बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)।
सरकार द्वारा आम जनता की शिकायतों के त्वरित निस्तारण के लिए शुरू की गई एकीकृत शिकायत निवारण प्रणाली (IGRS) अब भ्रष्टाचार और लापरवाही की भेंट चढ़ती नज़र आ रही है। हालात ऐसे हैं कि जिस अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ शिकायत दर्ज होती है, उसी को मामले की जांच सौंप दी जाती है। ऐसा ही चौंकाने वाला मामला बाराबंकी के हैदरगढ़ तहसील क्षेत्र से सामने आया है, जहां एक आरोपी लेखपाल को ही जांच अधिकारी बना दिया गया। पीड़ित ने इस मामले में उच्चाधिकारियों तक शिकायत पहुंचाई है और कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
क्या है पूरा मामला?
सिद्धौर ब्लॉक की ग्राम पंचायत शेषपुर निवासी आशीष तिवारी का गांव के ही राकेश कुमार मिश्रा से पुश्तैनी मकान के सामने स्थित सहन की भूमि को लेकर विवाद चल रहा है। न्यायालय ने पूर्व में आशीष तिवारी के पक्ष में फैसला सुनाया था और स्थगन आदेश (Stay Order) भी जारी किया हुआ है। इसके बावजूद विपक्षी जबरन विवादित भूमि पर निर्माण कार्य और खड़ंजा डालने का प्रयास कर रहे हैं।

लेखपाल पर साठगांठ और फर्जी आख्या का आरोप
आशीष तिवारी ने बताया कि 3 अगस्त को तेज बारिश में उनके सहन में लगा एक पेड़ गिर गया, जिसे हटाने को लेकर विवाद बढ़ गया। जब उन्होंने इसकी शिकायत जनसुनवाई पोर्टल पर दर्ज कराई, तो क्षेत्रीय लेखपाल राम नरेश ने विपक्षी पक्ष से अनुचित लाभ लेकर 2 सितम्बर 2025 को झूठी आख्या (फर्जी रिपोर्ट) लगा दी और कोर्ट के आदेश की अवमानना करते हुए मामले का निस्तारण कर दिया।

चौंकाने वाली जांच प्रक्रिया
आशीष तिवारी ने 9 सितम्बर को उप जिलाधिकारी हैदरगढ़ को शिकायती पत्र देकर लेखपाल राम नरेश के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि जिस लेखपाल पर आरोप लगा, उसी आरोपी को ही मामले का जांच अधिकारी बना दिया गया।
राम नरेश ने 17 सितम्बर 2025 को खुद ही अपने खिलाफ लगे गंभीर आरोपों की जांच की और पुनः झूठी रिपोर्ट लगाकर मामला बंद कर दिया।


पीड़ित ने की उच्चस्तरीय जांच की मांग
इस गंभीर लापरवाही से नाराज़ पीड़ित ने अब प्रमुख सचिव, मुख्यमंत्री और लोकायुक्त को पत्र लिखकर पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराने और दोषी अधिकारियों-कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। पीड़ित का कहना है कि अधिकारियों की लापरवाही के चलते जनसुनवाई पोर्टल (IGRS), जो न्याय दिलाने के लिए बनाया गया था, मजाक बनकर रह गया है।
रिपोर्ट – मंसूफ़ अहमद
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Author: Barabanki Express
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