
लखनऊ-यूपी।
यूपी के डॉक्टर अब एक साथ कई निजी अस्पतालों में अपनी सेवाएं नहीं दे पाएंगे। इसी तरह अस्पताल संचालक भी अपने यहां फर्जी तरीके से स्थाई चिकित्सकों को नहीं दिखा पाएंगे। स्वास्थ्य विभाग ने डॉक्टरों और निजी अस्पताल संचालकों का यह खेल पकड़ने के लिए जनहित गारंटी पोर्टल तैयार कर लिया है। इस नए पोर्टल पर डाक्टरों के एमसीआई (MCI) रजिस्ट्रेशन नंबर को लिंक करना अनिवार्य कर दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा के निर्देश पर स्वास्थ्य महानिदेशक डा. रतन पाल सिंह सुमन ने सभी सीएमओ को नये पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराने के निर्देश जारी कर दिए हैं।
निजी अस्पतालों को परमानेंट स्टॉफ के रूप में तैनात चिकित्सकों का एमसीआई रजिस्ट्रेशन नंबर नये पोर्टल पर भरना अनिवार्य कर दिया गया है। किसी भी अस्पताल द्वारा पंजीकरण के समय जैसे ही चिकित्सक का MCI रजिस्ट्रेशन नंबर डाला जाएगा पोर्टल बता देगा कि इस नंबर का उपयोग किस-किस अस्पताल द्वारा किया गया है। ऐसा होने पर उस अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई की जा सकेगी।
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प्रदेश के कई जिलों से शासन को इस तरह की शिकायतें मिल रहीं थीं कि एक ही डॉक्टर की डिग्रियों का प्रयोग कई-कई अस्पताल अपने यहां कर रहे हैं। एक ही डाक्टरों को स्थायी स्टाफ के रूप में दर्शाकर कई कई अस्पताल फर्जी तरीके से मानक पूरा कर रहे हैं। बीते दिनों आगरा, गाजियाबाद, कानपुर सहित कई जगह ऐसे मामले पकड़ में आए थे। इसे देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने नये पोर्टल में एमसीआई रजिस्ट्रेशन नंबर को भरना अनिवार्य कर दिया गया है। पोर्टल पर एमसीआई रजिस्ट्रेशन नंबर डालते ही चिकित्सक की पूरी जानकारी मिल जाएगी।
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स्वास्थ्य विभाग द्वारा बनाए गए जनहित गारंटी पोर्टल में अस्पतालों के पंजीकरण की व्यवस्था में बदलाव किया गया है। इसमें अस्पताल के नियमित स्टॉफ को लेकर विशेष प्रावधान किए गए हैं। यदि उसमें गड़बड़ी की गई तो पोर्टल आसानी से यह खेल पकड़ लेगा। स्वास्थ्य महकमे की इस सख्ती के बाद तमाम छोटे अस्पतालों के लिए बड़ी दिक्कत आने वाली है। अब इन अस्पतालों को वास्तविक नियुक्ति करनी पड़ेगी। अभी तक अस्पताल डाक्टरों को तयशुदा रकम देकर उनके नाम का उपयोग कर लेते थे। इसमें दोनों को फायदा होता था। लेकिन डॉक्टरों पर शिकंजा कसने के बाद अब अस्पतालों को मोटी रकम चुकानी होगी।
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हालांकि जो चिकित्सक कंसल्टेंट के रूप में निजी अस्पतालों को सेवाएं दे रहे हैं, उन पर इस नई व्यवस्था का प्रभाव नहीं पड़ेगा। बतौर कंसल्टेंट वे एक से अधिक अस्पतालों में अपनी सेवाएं दे सकेंगे। मगर इतना जरूर है कि पोर्टल यह बता देगा कि अमुक डॉक्टर किन-किन अस्पतालों में कंसल्टेंट के रूप में काम कर रहे हैं।सरकार ने जहां सख्ती की है वहीं निजी अस्पतालों को बड़ी राहत भी दी है। सरकार ने निजी अस्पतालों के रजिस्ट्रेशन की वैधता पांच साल कर दी है। अब उन्हें रिन्यूअल के लिए हर साल सीएमओ दफ्तर के चक्कर नहीं काटने होंगे। इससे आर्थिक शोषण की शिकायतें भी दूर होंगी।
रिपोर्ट – नौमान माजिद
Author: Barabanki Express
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