Barabanki: मदरसे से तालीम लेकर लोको पायलट बना अबू उसामा — मदरसों को “आतंक” की फैक्ट्री बताकर नफरत फैलाने वालों को दिया करारा जवाब

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बाराबंकी के मदरसे में पढ़े अबू उसामा बने रेलवे के लोको पायलट। मेहनत से रची मिसाल, नफरत फैलाने वालों को दिया करारा जवाब।

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बाराबंकी, उत्तर प्रदेश।

जहां कुछ दक्षिणपंथी संगठन मदरसो को आतंकवाद की फैक्ट्री बताकर अक्सर एक वर्ग विशेष के लोगों के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश में लगे रहते हैं, वहीं बाराबंकी के एक मदरसा छात्र ने अपनी कामयाबी से इन नफरती तत्वों के मुंह पर जोरदार तमाचा मारा है।

ज़िले के मसौली ब्लॉक के बांसा गांव के रहने वाले अबू उसामा उर्फ शहजादे ने मदरसे से शुरुआती तालीम लेकर पहले ही प्रयास में रेलवे में सहायक लोको पायलट (Assistant Loco Pilot) बनकर इतिहास रच दिया है। उनकी यह उपलब्धि न सिर्फ उनके परिवार, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए गर्व का विषय बन गई है।

 

मदरसे से शुरू की पढ़ाई, रेलवे तक पहुंचा सफर

दरगाह सैय्यद अब्दुर्रज्जाक शाह रहमतुल्लाह अलैह के पास मिठाई की दुकान चलाने वाले कफ़ील उर्फ मुन्ना के बेटे अबू उसामा ने अपनी प्राथमिक शिक्षा कस्बे के मदरसा रज्जाकिया नाजिरिया से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने मसौली चौराहा स्थित सार्वजनिक शिक्षण संस्थान से इंटरमीडिएट, और फिर जहांगीराबाद इंस्टीट्यूट से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की।

कड़ी मेहनत और समर्पण के दम पर उन्होंने गोरखपुर ज़ोन से रेलवे की परीक्षा में चयनित होकर सहायक लोको पायलट का पद हासिल किया।

 

पिता की मेहनत और परिवार का त्याग बना प्रेरणा स्रोत

अबू उसामा के पिता कफ़ील उर्फ मुन्ना ने कहा — “मैं मिठाई की दुकान चलाकर अपने बच्चों को बेहतर तालीम देना चाहता था। आज बेटे ने मेरी उम्मीदों को हकीकत बना दिया।”

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वहीं अबू उसामा ने अपनी सफलता का श्रेय अपने बड़े भाई अबू तल्हा उर्फ राजा को दिया, जिन्होंने आर्थिक तंगी के चलते खुद की पढ़ाई बीच में छोड़कर पिता के साथ दुकान संभाली ताकि छोटा भाई अपने सपनों को पूरा कर सके।

उन्होंने कहा — “संघर्ष और मेहनत कभी बेकार नहीं जाते। अगर लगन और ईमानदारी से कोशिश की जाए तो कामयाबी जरूर मिलती है।”

 

 

मदरसे के छात्रों के लिए मिसाल

अबू उसामा ने कहा कि उन्होंने अपनी प्रारंभिक तालीम मदरसे से हासिल की और यही बुनियाद आगे की सफलता की वजह बनी। उन्होंने कहा —  “मदरसे सिर्फ मज़हबी तालीम नहीं देते, बल्कि इंसानियत, अनुशासन और मेहनत का सबक भी सिखाते हैं।”

 

उनकी इस उपलब्धि ने यह साबित कर दिया है कि मदरसे से पढ़े छात्र भी देश की मुख्यधारा में शानदार प्रदर्शन कर सकते हैं, और वे समाज में नफरत के बजाय प्रेरणा का संदेश देते हैं।

 

दोस्तों और शिक्षकों का भी अहम योगदान

अबू उसामा ने अपनी सफलता में मौलाना अहमद अली की दुआओं और अपने दोस्तों नदीम, इक़बाल और सुल्तान की प्रेरणा को अहम बताया। उन्होंने कहा कि इन सबके सहयोग और हौसले से वह अपने लक्ष्य तक पहुंच सके।

 

यह कहानी सिर्फ एक सफलता नहीं, बल्कि एक जवाब है

अबू उसामा की कहानी उन सभी के लिए प्रेरणादायक संदेश है जो शिक्षा को धर्म की सीमाओं में बांधते हैं। उनकी यह सफलता बताती है कि प्रतिभा धर्म या जाति की मोहताज नहीं होती, बल्कि मेहनत और लगन से कोई भी व्यक्ति नई ऊंचाइयां छू सकता है।

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📝 रिपोर्ट – मंसूफ अहमद 

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Author: Barabanki Express

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