लखनऊ, यूपी।
उत्तर प्रदेश में 5,000 से अधिक सरकारी स्कूलों के प्रस्तावित मर्जर (विलय) पर फिलहाल अस्थाई रोक लगती दिख रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शुक्रवार को इस मामले पर सुनवाई पूरी करते हुए यथास्थिति बनाए रखने का मौखिक आदेश जारी किया है। कोर्ट ने साफ कहा कि जब तक अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक स्कूल मर्जर की प्रक्रिया पर यथास्थिति बना कर रखी जाए। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है, जिससे हजारों बच्चों और शिक्षकों के भविष्य पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं।
यूपी सरकार 50 से कम छात्र संख्या वाले 5,000 से अधिक प्राइमरी और जूनियर स्कूलों को मर्ज करने की योजना बना रही है। सरकार का तर्क है कि यह कदम स्कूलों के बेहतर प्रबंधन और संसाधनों के उचित उपयोग के लिए उठाया जा रहा है। अपर महाधिवक्ता (AAG) अनुज कुदेशिया ने राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि सरकार की मंशा स्कूलों को बंद करने की नहीं है, बल्कि उनका बेहतर तरीके से उपयोग करना है। उन्होंने यह भी बताया कि प्रदेश में 58 ऐसे स्कूल हैं, जहां एक भी छात्र का नामांकन नहीं है, और ऐसे स्कूलों का उपयोग अन्य सरकारी कार्यों के लिए किया जाएगा।
बच्चों ने खटखटाया हाईकोर्ट का दरवाजा
सरकार के इस फैसले के विरोध में सीतापुर की कृष्णा कुमारी समेत 51 स्कूली बच्चों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की।
आरटीई का उल्लंघन और बच्चों के मौलिक अधिकारों का हनन
याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता लालता प्रसाद मिश्रा ने कोर्ट में जोरदार दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा कि स्कूलों को मर्ज करने संबंधी राज्य सरकार का फैसला शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) 2009 के खिलाफ है। आरटीई के तहत 300 की आबादी वाले क्षेत्र में एक किलोमीटर के दायरे में स्कूल होना अनिवार्य है।
वकील ने आगे कहा कि स्कूलों को मर्ज करने का आदेश बच्चों के मौलिक अधिकारों का हनन है। उन्होंने तर्क दिया कि जब देश की संसद ने आरटीई कानून बनाया है, तो राज्य सरकार उसे कैसे बदल सकती है? उन्होंने चेतावनी दी कि स्कूलों के मर्जर से हजारों बच्चों और शिक्षकों का भविष्य संकट में आ जाएगा। इसके अलावा, उन्होंने यह भी बताया कि मर्जर के बाद कई बच्चों को अपने गांव से 2-3 किलोमीटर दूर पढ़ने जाना पड़ेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन सुविधाओं की कमी और साधनों का अभाव बच्चों की शिक्षा में एक बड़ी बाधा बन सकता है, जिससे उनकी पढ़ाई छूटने का खतरा बढ़ जाएगा।
फिलहाल, हाईकोर्ट के अंतिम फैसले का इंतजार है, जो यूपी में सरकारी शिक्षा के भविष्य पर एक बड़ा प्रभाव डालेगा।
रिपोर्ट – नौमान माजिद
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Author: Barabanki Express
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